भोपाल की जूनियर क्रिकेट टीमो ने इस सीजन बेहतर प्रदर्शन किया है, जिसका पूरा श्रेय भोपाल क्रिकेट एसोसिएशन की कोर टीम की कड़ी मेहनत है और युवा खिलाड़ियों के लाजवाब प्रदर्शन को जाता है। जीत का परिणाम आने मे थोड़ा समय तो अवश्य लगा पर यह बेहतरीन प्रदर्शन जब आया तब वह टीम का महत्व और निरंतरता का महत्व को दर्शाता रहा है एवम् भविष्य के लिये उत्साहवर्धन भी कर रहा है।
13 एवम् 15 वर्ष से कम के आयु वर्ग में बीडीसीए की बालक वर्ग की टीम ने इस वर्ष अन्तर सम्भागीय स्पर्धा में उच्च कोटि का प्रर्दशन कर सफलता प्राप्त की है। यह प्रदर्शन इस ओर इशारा कर रहा है कि बीडीसीए रुपी माली ने उन्नत किस्म का पौधा चुनकर उससे एक शानदार फसल अपनी नर्सरी में तैयार कर ली है।आवश्यकता है अब इस फसल के पल्लवित पौधे को वृक्ष बनाने की जो अपनी छाया और फल से आने वाले वर्षों में भोपाल क्रिकेट का उत्थान करें।
13 और 15 आयु वर्ग की अन्तर सम्भागीय स्पर्धा में विजेता बनने के पश्चात् भोपाल की टीम ने 15 वर्ष आयु वर्ग में शेष मध्यप्रदेश की टीम को भी हराया एवम् 13 वर्ष आयु वर्ग में भी एक मैच शेष मध्यप्रदेश से जीतने में सफल रहे। यह जीत या अच्छा प्रर्दशन यह दर्शाता है कि खिलाड़ियों के समूह से टीम बनाना कितना आवश्यक है। शेष मध्यप्रदेश की टीम स्पर्धा में सभी टीमों के बेहतर प्रर्दशन करने वाले खिलाड़ियों से बनाई जाती है परन्तु समयाभाव के कारण वह उच्च प्रर्दशन करने वाले खिलाड़ी और कोच टीम नहीं बना पाते हैं। एक अच्छी टीम बनाने में थोडा वक्त तो लगता ही है। बीडीसीए को भी लगा पर अंततः पदाधिकारियों की मेहनत रंग लाई और उन्होंने प्रशासनिक टीम जिसमें चयनकर्ता और कोच शामिल हैं का संजोयन किया। तत्पश्चात् उस टीम ने एक ऐसी टीम तैयार की जिसने क्रिकेट के क्षेत्र में भोपाल का गौख बढ़ाया।
हार जीत खेल का अभिन्न अंग है और यहाँ जो भी लिखा जा रहा है वह किसी भी व्यक्ति विशेष के सन्दर्भ में न होते हुए सिर्फ और सिर्फ टीम बनाने और टीम भावना के परिपेक्ष में लिखा जा रहा है। निर्णयों को क्रियान्वित करने वालों ने अपना काम किया जिससे खिलाडियों की टीम ने अच्छा प्रर्दशन कर अपना काम बखूबी पूर्ण किया। कुल मिलाकर यह एक शानदार टीम वर्क रहा, जिससे भोपाल क्रिकेट की फायदा हुआ। युवा आयु वर्ग से ऊपर की बात की जाए तो हम देखते है कि भोपाल टीम 22 वर्ष बालक वर्ग एवम् सीनियर महिला वर्ग में अन्तर सम्भाभीय स्पर्धा में विजेता रही।
भोपाल क्रिकेट में यह दौर एक क्रान्तिकारी परिवर्तन का दौर है जिसमें 13 या 15 वर्ष का बालक अपने आदर्श खिलाड़ी एक अलग प्रकार से बना रहा है और शायद इसमें कुछ गलत भी नहीं है, पर यह एक दुधारी तलवार में चलने के समान है, और हर कदम अत्यन्त कुशलता एवम् सम्भल कर रखने की आवश्यकता है। इस काम का पूरा जिम्मा बीडीसीए की टीम जिसमें कोच भी शामिल हैं, उन पर है। जिस तरह से खेल के दौरान खिलाड़ी नए नए अस्त्र शस्त्रों का उपयोग कर रहा है उसी तरह के अभिनव विचारों को प्रशासनिक स्तर पर भी उपयोग में लाना होगा। जिससे वह पल्लवित होता हुआ पौधा एक मजबूत वृक्ष बन सकें।
– हर्ष पाण्डे, बीसीसीआई लेवल बी कोच