नई दिल्ली: हर चार साल में आने वाले खेलों के महाकुंभ यानी ओलंपिक गेम्स पूरी दुनिया को एक साथ लाते हैं। इन खेलों का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके लिए हर एथलीट अपना सर्वश्रेष्ठ बचाकर रखता है। यही वजह है कि इस प्रतियोगिता से लीजेंड्स निकलते हैं। इनमें से कुछ लीजेंड्स एक अमिट छाप छोड़ जाते हैं। ओलंपिक इतिहास के पन्नों पर उनके नाम हमेशा के लिए अंकित हो जाते हैं। यहां ऐसे ही कुछ एथलीट के बारे में जानेंगे जिनके रिकॉर्ड कहानियां बन चुके हैं।
इस सूची में रिकॉर्ड तोड़ 28 पदक जीतने वाले तैराकी के दिग्गज माइकल फेल्प्स सबसे ऊपर हैं। उनके अलावा जिमनास्टिक आइकन लारिसा लातिनीना हैं, जिन्होंने वर्षों तक पदक का रिकॉर्ड अपने नाम रखा? उसैन बोल्ट हैं, जिन्होंने ट्रैक एंड फील्ड पर अपना दबदबा बनाया। फिनलैंड के ट्रैक एंड फील्ड खिलाड़ी पावो नूरमी (Paavo Nurmi) का नाम भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने करियर में 9 गोल्ड मेडल जीते।
पावो नूरमी का तो ट्रैक एंड फील्ड में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा से भी खास कनेक्शन है। इनमें ‘सबसे महान’ कौन है, इसे लेकर बहस हो सकती है, लेकिन यह अद्भुत एथलीट्स द्वारा अविश्वसनीय उपलब्धियां हासिल करने के बारे में है। पेरिस ओलंपिक में नए नायक उभरेंगे, लेकिन उससे पहले उन ओलंपियन के बारे में जानते हैं जो पहले से ही महान हैं।
माइकल फेल्प्स
माइकल फेल्प्स न केवल सबसे सम्मानित ओलंपियन हैं, बल्कि वे अलग ही श्रेणी के एथलीट हैं। फेल्प्स ने 23 स्वर्ण पदकों के साथ अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी की उपलब्धियों को दोगुना से भी अधिक कर दिया है। यह उनकी प्रतिभा और अटूट समर्पण का प्रमाण है। फेल्प्स की यात्रा 15 वर्ष की उम्र में शुरू हुई। तब उन्होंने 2000 के सिडनी ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। हालांकि तब वह पोडियम पर नहीं पहुंच पाए, लेकिन एथेंस 2004 के बाद से फेल्प्स अजेय शक्ति में बदल गए। उन्होंने रिकॉर्ड को ऐसे तोड़ा जैसे पूल में लहरें हों। उन्होंने बटरफ्लाई, फ़्रीस्टाइल और मेडले इवेंट में दबदबा बनाया। 2008 बीजिंग ओलंपिक ने उनकी विरासत को और मजबूत किया।
उन्होंने बीजिंग में 8 स्वर्ण पदक जीतकर हमवतन मार्क स्पिट्ज के 1972 के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। फेल्प्स ने 2012 लंदन ओलंपिक में लारिसा लातिनीना के 18 करियर पदकों के रिकॉर्ड को भी ध्वस्त कर दिया। संन्यास की घोषणा करने के बाद फेल्प्स 2016 रियो ओलंपिक में लौटे तथा पांच और स्वर्ण पदक जीते और साबित किया कि उम्र सिर्फ एक संख्या है। उनके नाम कुल 28 ओलंपिक पदक हैं, जिनमें 23 गोल्ड के अलावा 3 सिल्वर और 2 ब्रॉन्ज मेडल शामिल हैं। माइकल फेल्प्स न केवल सबसे ज्यादा ओलंपिक पदक जीतने का रिकॉर्ड रखते हैं; बल्कि ओलंपिक उत्कृष्टता की भावना को भी मूर्त रूप देते हैं। उनका प्रभुत्व बेजोड़ है, उनकी उपलब्धियां अभूतपूर्व हैं।
लारिसा लातिनीना
आज भले ही सिमोन बाइल्स जिमनास्टिक में एक प्रमुख शक्ति हों, लेकिन लारिसा लातिनीना ओलंपिक मंच पर बेजोड़ विरासत रखती हैं। तत्कालीन सोवियत संघ का प्रतिनिधित्व करने वाली लारिसा लातिनीना ने 18 ओलंपिक पदक जीते (2012 में माइकल फेल्प्स के उनसे आगे निकलने तक किसी भी एथलीट द्वारा जीते गए सबसे ज्यादा मेडल)। उनके संग्रह में लगातार तीन ओलंपिक (1956, 1960, 1964) में जीते गए नौ स्वर्ण पदक शामिल हैं।
लारिसा लातिनीना ने विभिन्न वर्गों में पांच रजत और चार कांस्य पदक भी जीते। सबसे बड़े मंच पर उनकी यह उल्लेखनीय निरंतरता उन्हें ‘सर्वकालिक महानतम जिमनास्ट’ के खिताब की प्रबल दावेदार बनाती है। लारिसा लातिनीना की प्रतिभा सिर्फ़ एक इवेंट तक सीमित नहीं थी। उन्होंने फ्लोर एक्सरसाइज में लगातार तीन स्वर्ण पदक जीतकर असाधारण एथलेटिकिज्म और कलात्मकता का प्रदर्शन किया। हालांकि, लारिसा लातिनीना के युग के बाद से खेल में काफी विकास हुआ है, लेकिन उनकी उपलब्धियां विस्मयकारी बनी हुई हैं।
उसैन बोल्ट
उसैन बोल्ट सिर्फ चैंपियन धावक ही नहीं थे, बल्कि एक शोमैन भी थे। उनका दबदबा निर्विवाद था। यह उनका विद्युतीय व्यक्तित्व था जिसने सारी दुनिया का ध्यान खींचा। उसैन बोल्ट की विरासत आठ स्वर्णिम पदकों पर आधारित है। इसमें बीजिंग (2008), लंदन (2012) और रियो (2016) ओलंपिक में 100 मीटर और 200 मीटर स्प्रिंट में लगातार स्वर्ण पदक। उनका दबदबा 4×100 मीटर रिले तक बढ़ा, जहां उन्होंने तीन और स्वर्ण पदक हासिल किए, लेकिन इसमें से एक छीन लिया गया।
दरअसल, रियो ओलंपिक 2026 के बाद जनवरी 2017 में डोपिंग में पॉजिटिव पाए जाने के बाद स्वर्ण पदक विजेता 4×100 मीटर रिले टीम के उनके साथी कार्टर को डिसक्वालिफाई कर दिया गया। इस कारण उसैन बोल्ट भी गोल्ड जीतने से चूक गए और उनके 8 स्वर्ण ही रह गए। हालांकि, इससे उसैन बोल्ट की प्रतिभा कम नहीं हुई। वह एक ओलंपिक लीजेंड्स, स्पीड के प्रतीक बने हुए हैं। उनका विद्युतीय व्यक्तित्व और सिग्नेचर लाइटनिंग पोज लाखों लोगों को प्रेरित करता है।
कार्ल लुईस
कार्ल लुईस सिर्फ ओलंपिक के दिग्गज ही नहीं, बल्कि प्रभुत्व के प्रतीक भी हैं। नौ ओलंपिक स्वर्ण पदकों के साथ, वह अधिकांश एथलीट्स से कहीं आगे हैं। स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड पत्रिका ने उन्हें 2022 में ‘सदी के ओलंपियन’ का तमगा दिया। लुईस का राज 1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक खेलों से शुरू हुआ। वह सिर्फ हिस्सा नहीं ले रहे थे, बल्कि मास्टरक्लास दे रहे थे। उन्होंने 100 मीटर, 200 मीटर, लंबी कूद और 4×100 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीता। 100 मीटर और रिले में विश्व रिकॉर्ड भी बनाए। \
लुईस ने सियोल, बार्सिलोना और अटलांटा में 5 और स्वर्ण पदक जीते। लुईस की विरासत सिर्फ पदकों तक सीमित नहीं है। उन्होंने एथलीट होने का मतलब फिर से परिभाषित किया। स्प्रिंटिंग और जंपिंग में बहुमुखी प्रतिभा ने उनकी असाधारण शारीरिक क्षमता को प्रदर्शित किया। नौ स्वर्ण पदकों और खेल पर उनके निर्विवाद प्रभाव के साथ, कार्ल लुईस ओलंपिक इतिहास में एक महान व्यक्ति हैं। वह निस्संदेह एक ऐसे आइकन हैं जिनकी उपस्थिति भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
मार्क स्पिट्ज
माइकल फेल्प्स के ओलंपिक तैराकी में वर्चस्व का पर्याय बनने से बहुत पहले, मार्क स्पिट्ज ‘पूल के महाराजा’ थे। शानदार दक्षता और शिकारी प्रवृत्ति के कारण ‘मार्क द शार्क’ के नाम से मशहूर स्पिट्ज ने 1972 के म्यूनिख खेलों में बेजोड़ प्रदर्शन के साथ ओलंपिक इतिहास में नाम दर्ज कराया। म्यूनिख 1972 स्पिट्ज के लिए निर्णायक क्षण था। वह सिर्फ रेस जीत ही नहीं रहे थे, बल्कि उन पर कब्जा कर रहे थे। एक ऐसी उपलब्धि जो अविश्वसनीय 36 वर्षों तक कायम रही।
मार्क स्पिट्ज ने 7 स्वर्ण पदक जीते और सभी 7 स्पर्धाओं में विश्व रिकॉर्ड बनाया जिसमें उन्होंने हिस्सा लिया। बटरफ्लाई से फ़्रीस्टाइल और मेडले रिले तक, मार्क स्पिट्ज के लिए कोई भी दूरी या स्ट्रोक चुनौती नहीं थी। वह तकनीक के उस्ताद थे, जो बेजोड़ गति और शालीनता के साथ पानी में तैरते थे। उन्होंने दशकों तक एक ही ओलंपिक में सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम रखा, जो पूल में उनके बेजोड़ शासन का प्रमाण है। हालांकि, माइकल फेल्प्स ने उनके पदकों की संख्या को पार कर लिया, लेकिन स्पिट्ज़ की विरासत अब भी बरकरार है।
पावो नूरमी
नीरज चोपड़ा की पावो नूरमी खेलों (2024 में स्वर्ण और 2022 में रजत पदक) में जीत ने इस ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता को भारतीय प्रशंसकों के लिए सुर्खियों में ला दिया। यह आयोजन जो पहले कई लोगों के लिए अज्ञात था, अब चैंपियनों के लिए ब्रीडिंग ग्राउंड के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन पावो नूरमी खेलों का एक गहरा महत्व है। इनका नाम पावो नूरमी के नाम पर रखा गया है, जोकि ‘द फ्लाइंग फिन’ के नाम से प्रसिद्ध धावक थे। नूरमी ने इस खेल पर दबदबा बनाया। उन्होंने तीन ओलंपिक में नौ स्वर्ण पदक और कुल 12 पदक हासिल किए।
उनका 1924 का पेरिस ओलंपिक खेल सबसे अलग है। जहां वह एक ही स्पर्धा में पांच स्वर्ण जीतने वाले पहले एथलीट (एक ऐसी उपलब्धि जो दशकों तक बेमिसाल रही) बने। 1924 ओलंपिक खेलों में पावो नूरमी का दबदबा नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया, जहां उन्होंने 90 मिनट के भीतर 1500 मीटर और 5000 मीटर दोनों स्वर्ण पदक जीतकर सबको धता बता दिया। नूरमी का प्रभाव पदकों से कहीं आगे है। उन्होंने प्रशिक्षण विधियों में क्रांतिकारी बदलाव किया।
बिरगिट फिशर
पदकों की संख्या ओलंपिक सफलता का एक महत्वपूर्ण मापदंड है और जर्मन कयाकिंग लीजेंड बिरगिट फिशर इस बात को बखूबी दर्शाती हैं। बिरगिट फिशर का 6 ओलंपिक खेलों (1980, 1988, 1992, 1996, 2000, 2004) का बेजोड़ करियर है। वह जीडीआर (German Democratic Republic) के बहिष्कार के कारण 1984 ओलंपिक खेलों में हिस्सा नहीं ले पाईं थीं। बिरगिट फिशर के समर्पण और प्रतिभा को उनकी पदक संख्या (8 स्वर्ण और 4 रजत पदक) और पुख्ता करते हैं। बिरगिट फिशर का प्रभुत्व केवल एक श्रेणी तक सीमित नहीं था।
उन्होंने सिंगल कयाक, डबल कयाक और 4 पर्सन कयाक में स्वर्ण पदक हासिल किए। वह 20 साल के अंतराल पर पदक जीतने वाली एकमात्र महिला ओलंपियन बनीं। बिरगिट फिशर की विरासत पदकों से परे है। वह सभी उम्र के एथलीट्स के लिए ऐसी प्रेरणा हैं, जो साबित करती है कि समर्पण और दृढ़ता रिकॉर्ड को फिर से लिख और सीमाओं को चुनौती दे सकती है। ‘कैनो कयाकिंग की रानी’ के रूप में उनका शासन अब भी निर्विवाद है, जिसने उन्हें अब तक के सबसे महान ओलंपियंस में स्थान दिलाया है।
इसाबेल वर्थ
इसाबेल वर्थ सिर्फ एक सम्मानित घुड़सवार ही नहीं, बल्कि ड्रेसेज की चुनौतीपूर्ण दुनिया में अटूट उत्कृष्टता का प्रतीक हैं। उनका ओलंपिक करियर निरंतरता और महारत का एक मास्टरक्लास है। इसाबेल वर्थ ने 6 ओलंपिक (1992 से 2020 तक) में हर बार कम से कम एक स्वर्ण पदक जीता। यह अविश्वसनीय उपलब्धि लगभग तीन दशकों तक शीर्ष प्रदर्शन को बनाए रखने की उनकी क्षमता के बारे में बहुत कुछ बताती है। सात स्वर्ण और पांच रजत पदकों की विशाल संख्या उनकी कहानी को बयां करती है।
इसाबेल वर्थ का प्रभुत्व केवल एक जीत तक सीमित नहीं था। अपने करियर में विभिन्न घोड़ों के साथ उनकी साझेदारी ने इन शानदार जानवरों को प्रशिक्षित करने और उनसे जुड़ने की उनकी असाधारण क्षमता को भी प्रदर्शित किया। इसाबेल वर्थ का प्रभाव पदकों से कहीं आगे तक है। उन्होंने कलात्मकता और सटीकता की सीमाओं को बढ़ाते हुए ड्रेसेज राइडर होने का अर्थ परिभाषित किया। उनकी लगन और प्रतिभा ने महत्वाकांक्षी घुड़सवारों की एक पीढ़ी को प्रेरित किया है तथा सर्वकालिक महानतम ओलंपियंस में से एक के रूप में उनकी जगह को मजबूत किया है।