मुंबई: यह सुन कर अजीब लगता है कि मुंबई जैसे विकसित शहर में मैदान की कमी के कारण कोई फुटबॉल मैच नहीं हो सका। हालांकि, अगर आप मुंबई फुटबॉल एसोसिएशन (एमएफए) के संरक्षकों से पूछेंगे कि सबसे पुरानी हारवुड लीग कोरोना के बाद से वापसी क्यों नहीं हो सकी तो उनका जवाब आपको सोंचने पर मजबूर कर देगा।
मुंबई फुटबॉल एसोसिएशन के ट्रस्टी उदयन बनर्जी ने बताया कि जब 1983 में सेंट जेवियर्स मैदान का गठन हुआ था, तब एमएफए को परेल में सेंट जेवियर्स मैदान का केयरटेकर बनाया गया था। हालांकि, इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन महामारी (कोविड-19) के दौरान मैदान का इस्तेमाल परीक्षण केंद्र और टीकाकरण केंद्र के रूप में किया जाने लगा। उसके बाद इसमें दो स्टॉर्म वाटर ड्रेन होल्डिंग तालाब बना दिए गए और मैदान को खराब हालत में छोड़ दिया गया। जब तक इसकी मरम्मत नहीं हो जाती तब तक इसका इस्तेमाल फुटबॉल के लिए नहीं किया जा सकता।
16 हजार वर्ग मीटर का यह ग्राउंड आज की स्थिति में अव्यवस्थित पड़ा है। बाउंड्री वॉल का एक हिस्सा ढह चुका है, गोल पोस्ट गिर चुके हैं जिसकी वजह से मलबा चारों तरफ फैला पड़ा है। बनर्जी ने कहा- बीएमसी ने हमें इसकी मरम्मत करने के लिए कहा था, लेकिन हमने इसे नष्ट नहीं किया, तो हम क्यों करें? इसमें कम से कम 25 लाख रुपये खर्च होंगे।
मुख्य मैदान की खराब हालत के कारण एमएफए अन्य लीगों के लिए बांद्रा स्थित नेविल डिसूजा मैदान या चेंबूर में आरसीएफ मैदान का उपयोग करता है। वहीं, हारवुड लीग के लिए उनके पास कोई मैदान नहीं बचा। एमएफए की नजर नरीमन पॉइंट के कूपरेज ग्राउंड पर थी। हालांकि, महंगा होने के कारण इसका आयोजन नहीं हो सका।
खेल के प्रायोजकों के विषय में बात करते हुए बनर्जी ने निराशा जताई। उन्होंने कहा- स्थानीय मुंबई खेलों का प्रचार-प्रसार ठीक से नहीं किया जाता है, इसलिए वे बहुत अधिक प्रायोजकों को आकर्षित नहीं करते हैं। खेल दर्शकों के लिए निशुल्क हैं, लेकिन बहुत कम लोग आते हैं।
हारवुड लीग की किस्मत में बदलाव खेल मैदान सलाहकार और दिग्गज फुटबॉल खिलाड़ी नदीम मेमन के रूप में आया। उन्होंने ही इसे पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया। नदीम ने कहा- एमएफए ने मुझसे संपर्क किया और मुझे मैदान हासिल करने में आने वाली समस्याओं के बारे में बताया। इसलिए मैंने इस सीजन के खेलों को प्रायोजित करने और उनकी मदद करने का फैसला किया।
बनर्जी ने बताया कि 15 दिन के टूर्नामेंट के लिए हमसे लगभग तीन लाख का किराया मांगा जा रहा था। मेमन इसे आधे से भी कम करवाने में सफल रहे। इसके जवाब में मेमन ने कहा- फुटबॉल ने मुझे मेरी पहली नौकरी दी, 18 साल की उम्र में आईडीबीआई बैंक की टीम के लिए खेलने का मुझे मौका मिला। यह खेल को वापस देने का मेरा तरीका है।
बात करें हारवुड लीग के इतिहास की तो 1902 में इसकी शुरुआत कर्नल जे जी हार्वुड ने किया था। उन्होंने वेस्टर्न इंडिया फुटबॉल एसोसिएशन (डब्ल्यूआईएफए) की भी स्थापना की थी। इसके बाद लीग को एक अलग समिति ने अपने अधीन कर लिया, जब तक कि 1911 में डब्ल्यूआईएफए का दूसरा संस्करण नहीं बन गया। 1916 से 1920 तक खेलों में कुछ समय के लिए ब्रेक रहा और फिर इसकी शुरुआत हुई।
ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुसार, इस खेल के शुरुआती विजेता ब्रिटिश सेना की रेजिमेंटल टीमें थीं – 1942 तक, जब वेस्टर्न इंडिया ऑटोमोबाइल एसोसिएशन स्टाफ टीम ने जीत हासिल की। तब से भारतीय टीमों ने विजयी खिताब पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी है। इसके इतिहास में एक और ट्रस्ट 1990 में उभरा जब लीग के दो संस्करण एक साथ आयोजित किए गए। एक डब्ल्यूआईएफए द्वारा और दूसरा बॉम्बे डिस्ट्रिक्ट फुटबॉल एसोसिएशन (बाद में मुंबई डिस्ट्रिक्ट फुटबॉल एसोसिएशन (एमडीएफए) या एमएफए द्वारा। यह 1999 तक जारी रहा, जिसके बाद एसोसिएशन ने अपने मतभेदों को सुलझा लिया और हारवुड लीग को एक में बदल दिया गया।
हारवुड लीग का नया सत्र 21 सितंबर को शुरू हुआ है, जिसका फाइनल मुकाबला पांच अक्तूबर को खेला जाएगा। आठ टीमें एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, कुछ कॉर्पोरेट टीमें, जैसे बैंक ऑफ बड़ौदा की एक टीम, और कुछ टीमें मुंबई कस्टम्स जैसी सरकारी सहायक कंपनियों से जुड़ी हैं। बनर्जी ने कहा- वे वजीफे पर फुटबॉल खिलाड़ियों को नियुक्त करते हैं। लेकिन टीमें, खासकर कॉर्पोरेट की कम होती जा रही हैं।