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Tuesday, April 22, 2025

एवरेस्ट फतह करने वाली दिव्यांग अरूणिमा ने खिलाड़ियों को लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए किया प्रोत्साहित

भोपाल। एवरेस्ट शिखर पर चढ़नेवाली देश की पहली दिव्यांग अरूणिमा सिन्हा ने आज तात्या टोपे स्टेडियम भोपाल में संचालक खेल और युवा कल्याण डाँ. एस.एल. थाउसेन से सौजन्य भेंट की। उन्होंने संचालक खेल से मिलकर अपने एवरेस्ट फतह करने के अनुभव साझा किए। संचालक खेल ने अरूणिमा को आग्रह किया कि वे अकादमी एवं पे एण्ड प्ले के खिलाड़ियों से मिलकर उन्हें प्रोत्साहित करे।


अरूणिमा ने बाॅक्सिंग, कराते, व्हाॅलीबाल एवं बैडमिंटन के खिलाड़ियों से अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि एवरेस्ट समिट करने के लिए उन्होंने कड़ा परिश्रम किया, लगातार लक्ष्य को ध्यान में रखकर तैयारी की जिसके कारण असम्भव को भी उन्होंने संभव कर दिखाया और वह देश की पहली दिव्यांग पर्वातारोही बनी जिन्होंने एवरेस्ट समिट को पूरा किया। उन्होंने 21 मई 2013 को माउंट एवरेस्ट 29028 फुट फतह की। अरूणिमा ने खिलाड़ियों को यह भी बताया कि वह एक व्हाॅलीबाल की खिलाड़ी थी। लखनउ से दिल्ली जाते समय ट्रेन में सफर के दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने उनके बैग एवं सोने की चेन के लिए उन्हें चलती ट्रेन से नीचे गिरा दिया था जिसके कारण उनका एक पैर दुर्घटना के कारण उन्हें खोना पड़ा था। जीवन की कठिनाईयों से उबरते हुए उन्होंने अपने हौसले के दम पर एवरेस्ट समिट की। एवरेस्ट समिट के दौरान आई कठिनाईयों से भी उन्होंने खिलाड़ियों को अवगत कराया।

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खिलाड़ियों ने अरूणिमा से समिट के संबंध में कई प्रश्न पूछे। बैडमिंटन के नन्हे खिलाड़ी नितिन ने उनसे पूछा कि एवरेस्ट समिट में सामान्य पर्वतारोहियों को कठिनाई आती है, आपने कैसे कृत्रिम पैर के सहारे यह कार्य किया। अरूणिमा ने बताया माईनस 20 डिग्री टेम्प्रेचर में कृत्रिम पैर के साथ वर्फ में चलने से उनके पैर में कृत्रिम अंगो के कारण गहरे घाव हो गए थे। समिट के दौरान रात को चलना पड़ता था क्योंकि दिन में वर्फ पिघलने के कारण बहुत फिसलन होती थी। अत्यंत कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल किया। इस दौरान एवरेस्ट समिट के नजदीक उन्होंने कई पर्वतारोहियों की लाशों को देखा जिनके कारण एक बार तो उनका भी मनोबल टूट गया था। अरूणिमा ने अपनी इच्छा शक्ति के दम पर यह कर दिखाया। अरूणिमा ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करते हुए अच्छे प्रदर्शन करने के लिए कड़ी मेहनत, लगन एवं अनुशासन में रहकर कार्य करने की सलाह दी। उन्होंने खिलाड़ियों को बताया कि जब वह इतनी कठिनाईयों के बाद कृत्रिम अंग से इतना बड़ा कार्य कर सकती है तो वे क्यों नहीं कर सकते। खिलाड़ियों ने मुक्तकंठ से अरूणिमा के जज्बे एवं प्राप्त उपलब्धियों को सराहा।

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