नई दिल्ली: नितिन शर्मा। पैरालंपिक खेलों में मंगलवार देर रात अजीत सिंह ने F46 कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता। अजीत ने 65.62 मीटर के थ्रो के साथ देश को मेडल दिलाया। उनका यह मेडल उनके खास दोस्त अंशूमन सिंह के लिए भी जश्न मनाने का बड़ा मौका है। अंशूमन की जान बचाने की कोशिश में ही अजीत यादव को अपना हाथ खोना खड़ा। आज एक ही हाथ से जैवलिन थ्रो करके उन्होंने पैरालंपिक के पोडियम तक का सफर तय किया।
2017 में हुआ हादसा
अजीत के सफर की शुरुआत 2017 में हुई। वह ग्वालियर के लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन में रिसर्च एसिस्टेंट थे। चार दिसंबर 2017 को वह अपने जूनियर अंशुमन के साथ जबलपुर में एक शादी में शामिल होने पहुंचे। शादी से लौटते हुए वह कामयाबी एक्सप्रेस में सफर कर रहे थे। दोनों मेहर स्टेशन पर पानी भरने उतरे। वह लौटते इससे पहले ही ट्रेन चल पड़ी।
अजीत ने बचाई दोस्त की जान
यादव पहले बोगी में चढ़ गए। हालांकि अंशुमन चढ़ते हुए फिसल गए। वह गिरते इससे पहले ही अजीत ने उन्हें एक हाथ से पकड़ लिया। हालांकि वह ज्यादा समय तक ऐसा नहीं कर सके। उनका संतुलन बिगड़ा और दोनों गिर गए। अंशुमन प्लेटफॉर्म पर गिर वहीं अजीत ट्रैक पर गिरे। उनके हाथ पर ट्रेन गुजरी।
अजीत को गले लगाने को बेताब अंशुमन
अंशुमन आज भी वह दिन नहीं भूले हैं। उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी केवल अजीत के कारण बची। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘अजीत सर ने मुझे बचाने की कोशिश की। उन्होंने मुझे पकड़ा। वह अपना संतुलन खो बैठे और हम दोनों गिर गए। हम पहले सतना में एक लोकल अस्पताल में गए जिसके बाद हमें जबलपुर में रेफर किया गया। वह हमारा इलाज हुआ।’ अंशुमन का कहना है कि वह जब भी कहते हैं कि अजीत के कारण उनकी जिंदगी बची तो वह उनसे गले लगा लेते हैं। अजीत नहीं चाहते अंशुमन ऐसा सोचें। अंशुमन को अब इंतजार है कि कब उनके अजीत सर भारत लौटे और वह उन्हें कसकर गले लगाए।