नई दिल्ली: क्रिकेट भारत का सबसे लोकप्रिय खेल हैं। हर गली-मोहल्ले में इस खेल को देखने वाले पसंद करने वाले लोग हैं। हालांकि बीते कुछ सालों में हालात बदले हैं। आलम यह है कि अब क्रिकेटर्स का भी दूसरे खेलों की ओर रुझान बढ़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी ही कहानी है सचिन यादव की। उत्तर प्रदेश के इस खिलाड़ी ने नेशनल गेम्स में कमाल का प्रदर्शन किया। सलामी बल्लेबाज से तेज गेंदबाज बने सचिन यादव के करियर में आए इस मोड़ का श्रेय टोक्यो ओलंपिक को जाता है।
सचिन ने नेशनल गेम्स में जीता गोल्ड मेडल
25 साल के सचिन यादव ने जैवलिन थ्रो में नेशनल गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने अपने पांचवें और अंतिम प्रयास में भाले को 84.39 मीटर की दूरी तक फेंका जो उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। यादव ने 2015 में बनाए राजिंदर सिंह के 82.23 मीटर के राष्ट्रीय खेलों के पिछले रिकॉर्ड में सुधार किया।
साल की पहली प्रतियोगिता में जीता स्वर्ण पदक
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, “पहला थ्रो खराब रहा क्योंकि मैं फिसल गया और चोट लगने का डर मेरे मन में घर कर गया। हालांकि, दूसरा थ्रो अच्छा रहा और आखिरकार मुझे अधिक आत्मविश्वास महसूस हुआ। मुझे पता है कि अगर मैं अपनी लय हासिल कर लूंगा, तो मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा। यह मेरा सबसे बड़ा पदक है और मुझे खुशी है कि मैंने साल की पहली प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता,”
क्रिकेटर कैसा बन गया एथलीट
छह फुट चार इंच का यह खिलाड़ी कुछ साल पहले तक क्रिकेटर थे। वह पहले सलामी बल्लेबाज थे जिसके बाद वह तेज गेंदबाज बन गए। हालांकि उनके रिश्तेदार सचिन यादव ने उन्हें जैवलिन थ्रो में आने के लिए मनाया। दो साल वह दोनों खेलों का हिस्सा रहे। टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने नीरज चोपड़ा को गोल्ड मेडल जीतते हुए देखा और बस ठान लिया कि वह इसी खेल में करियर बनाएंगे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सचिन ने कहा, “नीरज भाई मेरे आदर्श हैं और मैं उनका बहुत करीब से अनुसरण करता हूं। 2016 अंडर-20 विश्व चैंपियनशिप में उनका 86.48 मीटर का थ्रो आज भी मुझे प्रेरित करता है।”
सचिन बागपत से नई दिल्ली आए और यहीं पर ट्रेनिंग शुरू की। वह पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्ट सुमित अंतिल को कोचिंग देने वाले नवल सिंह के साथ ट्रेनिंग करने लगे। सचिन को एनआईएस पटियाला से बुलावा आया था लेकिन उन्होंने फैसला किया कि वह दिल्ली में ही काम करेंगे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, “हां, मुझे एनआईएस पटियाला में कैंप में शामिल होने के लिए कॉल आया था, लेकिन मेरे कोच और मैंने दिल्ली में ही ट्रेनिंग लेने का फैसला किया। अभी, मैं अपने कोच के साथ परिणाम प्राप्त कर रहा हूं और दिल्ली से पटियाला में जाने का कोई मतलब नहीं है।’