नई दिल्ली: कोबे में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप से कुछ दिन पहले दृष्टिबाधित धावक सिमरन शर्मा अपने गाइड से मिलने भुवनेश्वर गई थीं, लेकिन 100 मीटर और 200 मीटर के विशेषज्ञ अनिमेष कुजूर का प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत व्यस्त था, इसलिए उनकी जगह अभय सिंह ने ली। पेरिस पैरालंपिक में यह साझेदारी सफल रही। सिमरन ने 24.75 सेकंड का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय लेकर तीसरा स्थान (कांस्य पदक जीता) हासिल किया। सिमरन ने हाल ही में संपन्न पेरिस पैरालंपिक 2024 में 200 मीटर में कांस्य पदक जीता। स्टेड डि फ्रांस में उनके साथ अभय ठीक वैसे ही दौड़ रहे थे, जैसे मई में सिमरन के विश्व चैंपियन बनने पर दौड़े थे। 24 साल की सिमरन और 18 साल के अभय ने पोडियम साझा किया और दोनों को पदक मिले।
अभय ने कहा, ‘यह मेरे लिए बड़ा कदम है। मेरे लिये पैरालंपिक और ओलंपिक बराबर हैं। मेरा लक्ष्य लॉस एंजिल्स ओलंपिक के लिए भी क्वालिफाई करना है। दोनों में पदक जीतने की कोशिश करूंगा।’ अभय सिंह ब्राजील के गेब्रियल गार्सिया से प्रेरित हैं। गेब्रियल गार्सिया ओलंपिक में ब्राजील के पुरुषों की 4×100 मीटर रिले के सदस्य हैं। गेब्रियल गार्सिया ने पैरालंपिक में 100 मीटर और 200 मीटर दोनों में जेरुसा गेबर डॉस सैंटोस को स्वर्ण पदक दिलाया था।
अभय कोई साधारण एथलीट नहीं है। वह 200 मीटर में अंडर-18 राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक हैं। उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय 21.08 सेकंड है। वह युवा एशियाई खेलों के कांस्य पदक विजेता हैं। हालांकि, पैरालंपिक में काम करना मुश्किल है, यहां तक कि छोटी सी गलती भी देश को पदक से वंचित कर सकती है। अभय तेज एथलीट हैं, लेकिन वह किसी भी बिंदु पर सिमरन को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ नहीं दे सकते, वह दौड़ की गति को तय नहीं कर सकते। उन्हें स्लिंगशॉटिंग (पैरा एथलीट को आगे खींचने के लिए हाथ आगे फेंकना) से बचना चाहिए। सिमरन को पहले फिनिश लाइन पार करनी होगी अन्यथा वह अयोग्य घोषित कर दी जाएंगी।
जितना लगता है उतना आसान नहीं
अभय को अंतिम 10 मीटर के दौरान सिमरन को ‘रिलीज’ करना होता है, लेकिन यह उतना आसान नहीं है, जितना लगता है। अभय सिंह ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बताया, ‘मैं अचानक धीमा नहीं कर सकता, क्योंकि इससे उसका स्ट्राइड पैटर्न (लंबे-लंबे डग भरना का क्रम) टूट जाएगा। वहीं अगर मैं तेजी से धीमा नहीं करूंगा, तो फिनिश लाइन पर उसके आगे निकलने का जोखिम है। हम दोनों को लय में दौड़ने की जरूरत है। यह महत्वपूर्ण है।’
सिमरन और अभय दोनों को स्टार्टिंग ब्लॉक की एक जोड़ी मिलती है, इसलिए बंदूक चलने से पहले दोनों को स्थिर रहने की जरूरत होती है। सिमरन अपने कांस्य पदक का आधा श्रेय अभय को देती हैं। सिमरन ने कहा, ‘गाइड की भूमिका महत्वपूर्ण है। दो एथलीट दौड़ रहे हैं, दो आधे शरीर की तरह, लेकिन यह एक जैसा होना चाहिए। भूमिका 50-50 की है और दोनों कोई गलती नहीं कर सकते।’
भुवनेश्वर में साथ दौड़े थे
भुवनेश्वर में पहली बार जब वे साथ दौड़े, तब से ही साथ हैं। अभय ने बताया, ‘यह भगवान की ओर से बनाया गया कनेक्शन है। हमारे हाथों के बीच एक बेहतरीन कनेक्शन था। हमने उसके बाद बहुत प्रैक्टिस की। एक एथलीट और गाइड के बीच तालमेल बैठाने में कम से कम एक साल लगता है, लेकिन हमने 5 महीने पहले ही साथ दौड़ना शुरू किया है। अभय 5 फीट और 7 इंच लंबे हैं, जबकि सिमरन 5 फीट और 4 इंच। दोनों ने बताया कि तीन इंच की ऊंचाई का अंतर सहज दौड़ में बाधा नहीं है।
पहले T13 श्रेणी में नहीं मिलता था गाइड
2021 के अंत तक सिमरन को टी13 वर्ग में वर्गीकृत किया गया था, वह दृष्टिबाधित थीं, लेकिन उन्हें गाइड का इस्तेमाल करने की मंजूरी नहीं थी। हालांकि, वह अपनी लेन में रहने के लिए संघर्ष कर रही थीं, क्योंकि वह मार्किंग को स्पष्ट रूप से नहीं देख पा रही थी। अगर वह बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करतीं तो उन्हें लेन की मार्किंग बदलते हुए दिखती थी। आखिरकार उन्हें T12 में पुनर्वर्गीकृत किया गया, जो एथलीट्स को गाइड का इस्तेमाल करने का विकल्प देता है।
सिमरन ने कहा, ‘मुझे एक गाइड की आवश्यकता है ताकि मैं निर्धारित ट्रैक से बाहर न दौड़ूं। मुझे अहसास ही नहीं होता कि मैंने ट्रैक बदल दिया है। मुझे पहले भी (लेन उल्लंघन के लिए) अयोग्य ठहराया जा चुका है।’ सिमरन का जन्म साढ़े छह महीने में ही हो गया था। जब से उन्हें याद है उन्हें अपनी नजर कमजोर ही लगी। ट्रैक पर चलते समय उनका पास्चर टेढ़ा रहता है क्योंकि सिर के झुकाव से उन्हें थोड़ा बेहतर देखने में मदद मिलती है।
कन्फ्यूज हो जाती हैं सिमरन शर्मा
सिमरन ने बताया, ‘बचपन में मुझे पढ़ने और अध्ययन करने में दिक्कत होती थी, क्योंकि अक्षर देखने में दिक्कत होती थी। मैं पास जाकर बगल से देखती थी। डॉक्टरों ने कहा कि यह (दृष्टि) ठीक नहीं होगी। अगर मेरा तनाव का स्तर बढ़ जाता है तो मैं कम देख पाती हूं। अगर मैं थक जाती हूं तो कम देख पाती हूँ।’ जब मैं 100 मीटर दौड़ती हूं, तो ट्रैक पर 200 मीटर के लिए भी निशान होते हैं… इतनी सारी लाइन होती हैं कि मैं भ्रमित हो जाती हूं। अगर मैं किसी एक खास चीज पर बहुत ज्यादा ध्यान देती हूं तो वह बहुत ज्यादा हिलने लगती है।’
100 मीटर रेस की हीट में फट गई थी मांसपेशी
सिमरन ने हालांकि, 200 मीटर में कांस्य पदक जीता, लेकिन 100 मीटर में चौथे स्थान पर आने पर वह बहुत निराश हो गईं थीं। हीट के बाद उन्हें कमर और हैमस्ट्रिंग में खिंचाव महसूस हुआ। एक बार एक प्रतियोगिता में उन्होंने बहुत ज्यादा जोर लगाया, जिससे उसकी मांसपेशी फट गई। चार दिनों में उन्हें पेरिस पैरालंपिक में 6 रेस में हिस्सा लेना था।
सिमरन ने बताया, ‘जब मुझे खिंचाव महसूस हुआ, तो मैं सोच रही थी कि मैं बाकी 5 रेस कैसे दौड़ूंगी। मानसिक रूप से दबाव था। 100 मीटर में पदक न जीत पाने के बाद मैं बहुत दुखी थी। लेकिन मैंने तय किया कि अगर मेरा पैर टूट भी गया तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, मैं 200 मीटर में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी। 100 मीटर का फाइनल रात में था और अगली सुबह 200 मीटर की हीट थी।’
गजेंद्र सिंह की प्रेरणा से जीत लिया पैरालंपिक में पदक
सिमरन के 100 मीटर में पोडियम तक नहीं पहुंचने के लिए अभय खुद को भी दोषी मानते हैं। अभय ने बताया कि यह उनकी सर्वश्रेष्ठ रेस नहीं थी। वे दोनों बहुत दुखी थे, लेकिन सिमरन के पति और कोच गजेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि वे खराब प्रदर्शन को लेकर नहीं रोएं। सिमरन ने उत्साहवर्धक बातचीत को याद किया। उन्होंने बताया, ‘हम 100 मीटर फाइनल के बाद उदास थे, लेकिन मेरे पति ने हमसे बात की और हमें प्रेरित किया। मैंने 200 मीटर फाइनल के दौरान कमर के दर्द के बारे में नहीं सोचा। बस पदक जीतने पर ध्यान केंद्रित किया।’
अभय और सिमरन के निशाने पर स्टार्स एथलीट हैं। सिमरन ने अगले साल होने वाली विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्प्रिंट डबल गोल्ड जीतने का लक्ष्य रखा है। अभय इससे कम का सपना नहीं देख रहे हैं। उनका निजी लक्ष्य है अंडर-20 दो सौ मीटर में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ना।