नई दिल्ली: क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जहां छोटी-छोटी गलतियां भी बड़े नतीजे ला सकती हैं। पिछले कुछ महीनों में टेस्ट क्रिकेट में एक ऐसी ही गलती ने सुर्खियां बटोरी हैं – नो-बॉल। अक्टूबर 2024 से लेकर अब तक टेस्ट क्रिकेट में नो-बॉल की संख्या ने कई टीमों, खासकर दक्षिण अफ्रीका, को परेशान किया है। इस दौरान दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों ने सात टेस्ट मैचों में कुल 113 नो-बॉल फेंकी हैं, जो किसी भी अन्य टीम से कहीं ज्यादा है। इस आंकड़े के पीछे सबसे बड़ा नाम है तेज गेंदबाज कगिसो रबाडा का, जिन्होंने अकेले 57 नो-बॉल फेंके हैं।
नो-बॉल किसी भी गेंदबाज के लिए एक झटके जैसी होती है। यह न सिर्फ बल्लेबाज को अतिरिक्त रन देती है, बल्कि गेंदबाज की मेहनत पर भी पानी फेर देती है। अगर नो-बॉल पर विकेट मिल जाए, तो वह मान्य नहीं होता और यह गेंदबाज के मनोबल को तोड़ सकता है। दक्षिण अफ्रीका के लिए यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है, जब उनके दो सबसे भरोसेमंद गेंदबाज – रबाडा और मार्को यानसेन इस मामले में सबसे आगे हैं। दोनों ने मिलकर एक ही पारी में 8 नो-बॉल फेंकीं, जो टीम के लिए निराशाजनक रहा।
रबाडा जो अपनी रफ्तार और सटीकता के लिए जाने जाते हैं, इस सूची में 57 नो-बॉल के साथ शीर्ष पर हैं। उनके बाद भारत के जसप्रीत बुमराह (24 नो-बॉल), इंग्लैंड के गस एटकिंसन (20 नो-बॉल), और दक्षिण अफ्रीका के ही मार्को यानसेन (19 नो-बॉल) और वियान मुल्डर (18 नो-बॉल) का नंबर आता है। दक्षिण अफ्रीका के एक और गेंदबाज डेन पैटरसन ने भी 17 नो-बॉल फेंकी हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों को अपनी गेंदबाजी की लय और अनुशासन पर काम करने की जरूरत है।
दक्षिण अफ्रीका के 113 नो-बॉल के मुकाबले भारत ने 61 नो-बॉल फेंकी हैं, जो दूसरा सबसे ज्यादा है। लेकिन भारत के गेंदबाजों ने इसे नियंत्रित करने की कोशिश की है, खासकर बुमराह जैसे अनुभवी गेंदबाज के नेतृत्व में। दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका के लिए यह एक सामूहिक समस्या बन गई है। सात टेस्ट में इतनी नो-बॉल फेंकना न सिर्फ अनुशासन की कमी दर्शाता है, बल्कि यह टीम की रणनीति पर भी सवाल उठाता है।