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Sunday, May 19, 2024

क्या Sachin Tendulkar जैसा कोई और क्रिकेटर होगा ?

नेशनल स्पोर्ट्स टाइम्स के प्रकाशन के 30 साल पूरे हो गए और इन 30 साल में किस खिलाड़ी के बारे में सबसे ज्यादा लिखा गया, किस खिलाड़ी का जिक्र अन्य दूसरे खिलाड़ियों ने सबसे ज्यादा किया और इनमें न सिर्फ क्रिकेटर, अन्य दूसरे खेलों के खिलाड़ी शामिल हैं और किस खिलाड़ी ने आम-जनमानस पर ऐसा असर डाला कि उसे ‘क्रिकेट का भगवान’ कहा जाने लगा- इन सभी सवाल का जवाब एक ही नाम है और वह है सचिन तेंदुलकर का। ये नाम इन 30 साल में, ग्राउंड पर और ग्राउंड के बाहर की हर चर्चा में छाया रहा, संयोग ये कि सचिन तेंदुलकर के 50 वें जन्मदिन की चर्चा के बीच ये 30 साल भी आ गए और इन सभी साल में वे खेल रहे थे या रिटायर हो गए थे- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

जब खेल रहे थे तो भारत की पारी को ऐसे संभाला कि वे पिच पर थे तो उम्मीद कभी खत्म नहीं हुई- उनकी 84 प्रतिशत टेस्ट पारी, दूसरे विकेट के गिरने पर शुरू हुई और हर पारी में हर उम्मीद उनसे जुड़ी थी। उनके हर कोच/कप्तान/सेलेक्टर ने कहा- कभी तेंदुलकर को ये बताने की जरूरत नहीं पड़ी की ‘उस’ पारी में टीम उनसे क्या उम्मीद कर रही है? एक स्कूल क्रिकेटर कब टीम इंडिया में इतनी बड़ी जिम्मेदारी ले गया- पता ही न चला और दूसरी टीम के लिए सबसे कीमती विकेट उनका बन गया। 1989 से जो उनके साथ या विरुद्ध खेले इंटरनेशनल क्रिकेट में- उनमें से किसी की भी राय इससे अलग नहीं थी।

1990 के ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट में पहले टेस्ट शतक से 100 बनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह 100 इंटरनेशनल शतक तक चला। इस रिकॉर्ड तक न तो उनसे पहले कोई पहुंचा था और न ही उसके बाद। अपने करियर के आखिर तक, क्रिकेट के प्रति अपना युवा जुनून बरकरार रखा और हर मैच उसी जोश से खेल रहे थे मानो ये पहला ही मैच हो। बोरियत, थकान, संतुष्टि जैसे शब्द उनके सामने बेकार थे और यूं लगता है कि चाहते तो तेंदुलकर हमेशा खेलते रहते। तब भी 200 टेस्ट ,463 वनडे और 1 टी20 इंटरनेशनल मैच भी कोई मजाक नहीं होते।

समय के साथ उन के प्रदर्शन ऐतिहासिक बन गए। 1998 के कोका-कोला कप में शारजाह में 131 गेंदों में 134 रन बनाकर भारत को जीत दिलाई।  इससे दो दिन पहले 131 गेंदों में 143 रन बनाकर फाइनल के लिए क्वालीफाई करने में मदद की थी। इन दोनों मैच में सामने ऑस्ट्रेलिया की टीम थी। 1992 के पर्थ टेस्ट के दौरान, 18 साल की उम्र में भारत की पहली पारी में 114 रन बनाए और तब 30 साल के थे जब 2004 में लगभग 10 घंटे में नाबाद 241 रन बनाए। 2007-08 बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में तेंदुलकर ने 150 रन तब बनाए जब वह 34 साल के थे और न सिर्फ टीम इंडिया, ज्यादातर टीम में इंटरनेशनल क्रिकेटरों की अगली पीढ़ी आ चुकी थी।

यहां तक कि इंडियन प्रीमियर लीग में भी जिन पहले 6 सीज़न में खेले- युवा क्रिकेटरों से किसी भी तरह से कम नहीं थे। उसके बाद से भी लगातार आईपीएल से जुड़े हुए हैं मेंटोर के तौर पर। वे क्रिकेट में बदलाव के बारे में उतना ही जानते हैं जितना कोई और। इसलिए ही तो आज भी टीम इंडिया के किसी भी मैच में जब ऐसा लगता है कि टीम संकट में है तो यूं लगता है वे पिच पर आएंगे और टीम संकट से बाहर आ जाएगी।

2011 वर्ल्ड कप में करियर की आख़िरी हसरत भी पूरी हो गई। वे कहते हैं- ‘2011 के वर्ल्ड कप फाइनल से बेहतर कुछ नहीं है। वह मेरे जीवन का सबसे अच्छा क्रिकेटिंग दिन था।’ खिलाड़ियों ने जीत के बाद तेंदुलकर को अपने कंधों पर उठा लिया था और युवा विराट कोहली ने तब कहा था- तेंदुलकर ने 21 साल तक देश की क्रिकेट का बोझ उठाया है; अब समय आ गया है कि हम उन्हें यादगार विदाई दें।’

आज की पीढ़ी यह सोच भी नहीं सकती कि तेंदुलकर वास्तव में कितने अच्छे बल्लेबाज थे? तेंदुलकर का हर मूवमेंट एक खबर बन गया।  उनकी सगाई हो या शादी- अख़बारों के लिए पहले पेज की खबर थी। राज्य सभा की सदस्यता, बिना मांगे मिली, तो अपने लिए उसका कोई फायदा नहीं उठाया और मदद की अपने फंड से। ‘मंकी गेट ‘में एक बार हरभजन के पक्ष में स्टेटमेंट दे दी तो उसके बाद जूरी के लिए हरभजन को कसूरवार ठहराना लगभग असंभव हो गया था।
क्या ऐसा कोई और क्रिकेटर होगा ?

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