नई दिल्ली: दुनिया में हर किसी को हर चीज नहीं मिलती है। अकसर लोग अपनी कमियों पर इतना ध्यान देते हैं कि उन्हें काबिलियत का अंदाजा ही नहीं हो पता। हालांकि जिन्हें वह खूबी नजर आ जाती है वह दुनिया के मिसाल बन जाते हैं। पेरिस पैरालंपिक में भारत ने मेडल जीतने का रिकॉर्ड तोड़ दिया। पेरिस में पोडियम पर खड़े होने वाले से लेकर हिस्सा लेने वाले तक, हर खिलाड़ी की कहानी मिसाल है। जो दुनिया की नजरों में कमी है इन खिलाड़ियों ने उसे अवसर बनाया और अपनी जिंदगी को नए मायने दिए।
सफर
पेरिस में बिना हाथ के तीरंदाजी करती शीतल भी दिखीं तो व्हीलचेयर पर बैठे परमबीर ने देश के लिए वही कमाल किया जो नीरज चोपड़ा ने किया। मनीषा रामदास ने एक हाथ से रैकेट की रफ्तार दिखाई तो आंखो की रोशनी लगभग खो चुके कपिल परमार जूडो के दांव लगाते नजर आए। इन खिलाड़ियों के मेडल जीतने से ज्यादा प्रेरिस करता है उनका सफर। हालांकि रिकॉर्ड्स के मामले में भी इन खिलाड़ियों ने वह कमाल किया जो इस पूरी सदी में नहीं हुआ।
सालों पुराना है भारत का सफर
ओलंपिक में भारत का सफर 124 साल पहले शुरू हुआ 1900 में जब ब्रिटिश मूल के नॉर्मन प्रिचार्ड ने एथलेटिक्स इवेंट्स में हिस्सा लिया। भारत का असली सफर 1928 में शुरू हुआ जहां भारतीय हॉकी टीम ने गोल्ड मेडल जीता था। पिछली सदी में भारत केवल हॉकी जैसे खेलों में ही अपना दबदबा बनाने में कायम रहा।
ओलंपिक के मेडल
पहले बात मेडल की। भारत को साल 2000 में सिडनी में हुए ओलंपिक में एक, 2004 में एथेंस ओलंपिक में एक, 2008 के बीजिंग ओलंपिक में तीन, लंदन 2012 ओलंपिक में 6 मेडल मिले। 2016 की रियो ओलंपिक में भारत केवल दो मेडल हासिल कर पाया। वहीं 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारत ने अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और सात मेडल हासिल किए।
पैरालंपिक में रचा इतिहास
पैरालंपिक खेलों की बात करें तो इन खेलों में भारत का सफर 1968 में तेल अवीव में शुरू हुआ। 1972 में हुए पैरालंपिक में भारत ने एक मेडल जीता। इसके बाद भारत लगातार इन खेलों में हिस्सा लेता रहा लेकिन भारत के मेडल की संख्या में सबसे बड़ा उछाल साल 2016 के बाद आया। 2016 की रियो ओलंपिक में भारत के खाते में 4 मेडल थे। वहीं टोक्यो में यह संख्या बढ़कर 19 हो गई। अगर पेरिस पैरालंपिक की बात करें तो यहां भारत के खाते में शुक्रवार तक 26 मेडल आ गए हैं। यानी भारत में इस सदी में जितने मेडल ओलंपिक खेलों में कुल मिलाकर जीते हैं उससे ज्यादा मेडल भारत के पहले एथलीट पेरिस से लेकर आएंगे।
इवेंट्स की संख्या है ज्यादा
पैरालंपिक ओलंपिक की मेडल संख्या के अंतर की वजह है। हम प्रतियोगिता के स्तर पर खिलाड़ियों का आकलन नहीं कर सकते क्योंकि दोनों ही खिलाड़ियों की अपनी-अपनी चुनौतियां हैं। हालांकि पैरालंपिक में जो एक फायदा भारत को मिलता है वह यह कि यहां इवेंट्स की संख्या ज्यादा होती है। इससे मेडल जीतने के चांस और बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए पुरुष जैवलिन थ्रो ओलंपिक में केवल एक इवेंट है। यानी यहां भारत के पास गोल्ड जीतने का केवल एक मौका है। वहीं भारत के अगर तीन खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं और तीन मेडल जीतने का मौका होता है।
पेरिस पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने पुरुष वर्ग में पांच अलग-अलग इवेंट्स में हिस्सा लिया। इसका मतलब भारत के पास सिर्फ पुरुष जैवलिन में पांच गोल्ड जीतने का मौका था। हालांकि पैरालंपिक में खिलाड़ियों के लिए चुनौती यह है कि अगर उनकी डिसेबिलिटी के अनुसार अगर कोई कैटेगरी निर्धारित नहीं है तो उन्हें ऐसी कैटेगरी में खेलना पड़ता है जहां सामने वाले खिलाड़ी को उनसे ज्यादा फायदा मिले।
चुनौतियों का करना पड़ता है सामना
उदाहरण के तौर पर शीतल देवी दुनिया की पहली ऐसी महिला तीरंदाज है जिनके हाथ नहीं है। हालांकि बिना हाथ के तीरंदाजी करने वाले खिलाड़ियों के लिए कोई अलग कैटेगरी नहीं है। ऐसे में शीतल देवी व्हीलचेयर कैटेगरी में देश का प्रतिनिधित्व करती है। व्हीलचेयर पर बैठे खिलाड़ियों का शरीर का निचला हिस्सा काम नहीं करता है लेकिन उनके दोनों हाथ होते हैं। वह उसी से निशाना लगाती है इसके बावजूद शीतल देवी अपने आप में एक मिसाल है। शीतल ने देश के लिए पेरिस में ब्रॉन्ज मेडल जीता बल्कि उससे पहले पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी देश के लिए मेडल आ चुकी है